पोर्ट्रेट शूट – कैमरे के पीछे मेरी यात्रा
पोर्ट्रेट शूट – कैमरे के पीछे मेरी यात्रा
सन्
1980 के
शुरुआती दौर
में
जब
मैंने
पहली
बार
फोटोग्राफी की
दुनिया
में
कदम
रखा,
तो
इस
कला
को
सीखना
एक
साथ
ही
चुनौतीपूर्ण और
रोमांचक था।
उस
समय
न
तो
ऑनलाइन
ट्यूटोरियल थे
और
न
ही
डिजिटल
सुविधाएँ। मैंने
पटना
की
ब्रिटिश लाइब्रेरी जैसी
प्रतिष्ठित लाइब्रेरी से
किताबें और
पत्रिकाएँ पढ़कर
खुद
को
डुबो
दिया,
जिन्होंने मेरी
फोटोग्राफी की
समझ
को
आकार
दिया।
इस
यात्रा
के
दौरान
मुझे
कोलकाता के
विख्यात फोटोग्राफर वेनु सेन और
दिल्ली
के
रघु राय जैसे
दिग्गजों से
मिलने
का
अवसर
मिला,
जिनके
काम
ने
मुझे
गहराई
से
प्रेरित किया।
ट्रायल और एरर ही
मेरे
सबसे
बड़े
गुरु
बने
और
धीरे-धीरे धैर्य और
अभ्यास
के
साथ
मैंने
इस
कला
पर
पकड़
बनानी
शुरू
की।
वे
काले-सफेद फिल्म के
दिन
थे,
जबकि
Ektachrome और
Konica Chrome कलर
फिल्में महंगी
मिलती
थीं।
हर
क्लिक
की
गिनती
होती
थी
क्योंकि एक
बार
शटर
दबाने
के
बाद
वापसी
का
कोई
रास्ता
नहीं
होता
था—न फ़ोटोशॉप, न
लाइटरूम, न
ही
दोबारा
मौका।
एक्सपोज़र, कम्पोज़िशन और
रोशनी
में
सटीकता
बेहद
ज़रूरी
थी।
मैं
हमेशा
दो
Nikon कैमरे साथ
रखता
था,
जिनमें
विभिन्न परिस्थितियों के
लिए
इंटरचेंजेबल लेंस
होते
थे।
पोर्ट्रेट सेशन
एक
दिन,
सांवली
रंगत
और
आकर्षक
नैन-नक्श वाली एक
युवती
ने
मुझसे
पोर्ट्रेट खिंचवाने की
इच्छा
जताई।
चूँकि
मैं
सीखने
के
दौर
में
था,
इसलिए
मैंने
वह
सबकुछ
लागू
किया
जो
अब
तक
मैंने
पढ़ा
और
सीखा
था—डिफ्यूज़
लाइट, बाउंस लाइट, डायरेक्ट लाइट, रिम लाइट, एपर्चर कंट्रोल, शटर स्पीड एडजस्टमेंट, डेप्थ ऑफ फील्ड इत्यादि।
यह
उल्लेखनीय है
कि
उस
तस्वीर
को
लेते
समय
प्रकाश
का
स्रोत
केवल
प्रकृति—यानी
सूर्य ही
था।
स्टूडियो जैसी
ढेरों
लाइट
नहीं
थीं।
मैंने
केवल
सूर्य
की
किरणों
को
नियंत्रित कर,
उन्हें
बाउंस
करके
उसके
चेहरे
पर
डाला—और परिणाम अद्भुत
निकला।
उसे
सहज
बनाने
के
लिए
मैंने
पढ़ाई
और
जीवन
से
जुड़ी
हल्की-फुल्की बातें कीं।
चाय-नाश्ता भी दिया
ताकि
कैमरे
के
सामने
वह
सहज
महसूस
करे।
एक
समय
मैंने
उससे
कहा
कि
वह
कैमरे
की
ओर
हल्की,
सम्मोहक सी
मुस्कान के
साथ
देखे—और उसने बिल्कुल वैसा
ही
किया।
जैसे-जैसे सेशन आगे
बढ़ा,
सूरज
ढलने
लगा
और
उसकी
बालों
के
चारों
ओर
रिम लाइट का
शानदार
इफ़ेक्ट बनने
लगा।
लेकिन
कैमरे
के
रिफ्लेक्टेड लाइट
मीटर
ने
ऐसे
सेटिंग
सुझाए
जिससे
चेहरा
अंडरएक्सपोज़ हो
जाता।
अपने
ज्ञान
का
उपयोग
करते
हुए
मैंने
एक
थर्माकोल शीट
से
चेहरे
पर
हल्की
रोशनी
बाउंस
की
और
बैकलाइट को
बरकरार
रखा।
लंबे
ज़ूम
लेंस
से
बैकग्राउंड को
कंप्रेस किया
और
परिणामस्वरूप एक
ऐसा
पोर्ट्रेट बना
जो
जीवंत
और
शाश्वत
लगा।
पोर्ट्रेट फोटोग्राफी के टिप्स
- क्रिएटिव
लाइटिंग का उपयोग करें – गोल्डन आवर, खिड़की से आने वाली रोशनी या बैकलाइटिंग एक सपनीला असर देती है।
- एंगल,
प्रॉप्स और नैचुरल फ्रेम्स (जैसे दरवाज़े या खिड़कियाँ) के साथ प्रयोग करें।
- आंखों
पर शार्प फोकस रखें – क्योंकि वे पोर्ट्रेट की आत्मा होती हैं।
- सच्ची
भावनाएँ और नैचुरल मोमेंट्स कैप्चर करें ताकि तस्वीर कहानी कह सके।
- लाइफ़स्टाइल
पोर्ट्रेट्स आज़माएँ – घर के माहौल, आसपास की चीज़ों या पालतू जानवरों को भी शामिल करें।
- सिल्हूट,
रिफ्लेक्शन और ब्लैक एंड व्हाइट से तस्वीरों को कलात्मक अंदाज़ दें।
अंतिम विचार
फोटोग्राफी केवल
तकनीकी
कौशल
तक
सीमित
नहीं
है—यह भावनाओं, जुड़ाव
और
उस
कहानी
के
बारे
में
है
जो
हर
फ्रेम
कहता
है।
उस
पोर्ट्रेट सेशन
ने
मुझे
सिखाया
कि
रोशनी,
रचनात्मकता और
इंसानी
जुड़ाव
की
ताक़त
ही
असली
मार्गदर्शक है—जो आज भी
मेरे
काम
का
हिस्सा
है।
✍️
पाठ एवं फ़ोटो: अशोक करन
🌐 ashokkaran.blogspot.com
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