बाढ़ग्रस्त खेतों से लेकर सुनहरी समृद्धि तक: बिहार की अनकही जूट कहानी
बाढ़ग्रस्त खेतों से लेकर सुनहरी समृद्धि तक: बिहार की अनकही जूट कहानी
#BiharJute #GoldenFiber
जब मैं बिहार के उत्तरी जिलों में बाढ़ पर रिपोर्टिंग कर रहा था, तो एक दृश्य ने मेरी जिज्ञासा जगा दी। हरे-भरे झाड़ीनुमा पौधे, जो ऊंची घास जैसे लग रहे थे, डूबे हुए खेतों से बाहर निकल रहे थे। स्थानीय लोग इन्हें सड़क किनारे इकट्ठा कर सुखा रहे थे। मुझे पता चला कि ये कोई खरपतवार नहीं, बल्कि जूट के पौधे हैं – बिहार की एक महत्वपूर्ण नकदी फसल, जो गन्ने के बाद दूसरे स्थान पर आती है।
बिहार, जहां 0.835 लाख हेक्टेयर में जूट की खेती होती है, भारत का दूसरा सबसे बड़ा जूट उत्पादक राज्य है! इसका अर्थ है 11.1 लाख गांठें कच्चे जूट की उपज, और प्रति हेक्टेयर 2393 गांठों की प्रभावशाली उत्पादकता।
जहां पश्चिम बंगाल 75% राष्ट्रीय उत्पादन के साथ निर्विवाद रूप से अग्रणी है, वहीं बिहार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खासकर पूर्णिया जिले के उपजाऊ खेत और कुशल किसान जूट उत्पादन में अहम योगदान देते हैं। जूट, जिसे उसकी मजबूती और बहुउपयोगिता के कारण "सुनहरा रेशा" कहा जाता है, वस्त्र उद्योग से लेकर पैकेजिंग तक कई उद्योगों की रीढ़ है।
बिहार के जूट क्षेत्र के लिए उत्साहजनक खबर है – भारत का पहला जूट पार्क "पुनरासर जूट पार्क" पूर्णिया में 600 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा है। सात इकाइयों वाला यह पार्क, उत्तर-पूर्वी बिहार के कोसी क्षेत्र के जूट किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
जूट के अलावा, बिहार कृषि उत्पादन में भी समृद्ध है – धान, गेहूं, मक्का और विभिन्न दालों एवं सब्जियों में इसकी विशिष्ट पहचान है। यह भूमि कृषि संपदा से भरपूर है!
जूट को 'सुनहरा' बनाने वाले तथ्य:
- चमकदार भूरा रंग: इसका सुनहरा रंग इसे "गोल्डन फाइबर" का उपनाम दिलाता है।
- आर्थिक संपन्नता: यह एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था को बल देती है।
- पर्यावरण के अनुकूल: 100% जैविक रूप से नष्ट होने वाला यह रेशा लिग्निन युक्त पौधों से बनता है, जो इसे टिकाऊ बनाता है।
- सस्ती लक्ज़री: यह सबसे किफायती प्राकृतिक रेशा है, जो टिकाऊ विकल्पों को आम लोगों की पहुंच में लाता है।
जूट गर्म और आर्द्र जलवायु में पनपता है। इसकी बुवाई मार्च-अप्रैल में होती है और कटाई जुलाई से अक्टूबर तक। इसका उपयोग बोरे, रस्सी, कालीन, कपड़े, यहां तक कि सजावटी वस्तुओं तक में होता है।
एक विनम्र नोट: मोगा रेशम को भी "गोल्डन फाइबर" कहा जाता है, लेकिन यह असम का एक जंगली रेशम है। वस्त्रों की दुनिया में कपास जहां "राजा" है, वहीं शुद्ध रेशम को "रानी" का दर्जा प्राप्त है।
तस्वीरों में: बिहार के पूर्णिया जिले में राजमार्ग के किनारे जूट की खेती।
लेख व फोटो: अशोक करण
ashokkaran.blogspot.com
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Beautiful shots.
जवाब देंहटाएंExcellent information.
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