दृढ़ संकल्प की कहानी: रांची में एक संयोगपूर्ण मुलाक़ात

 

दृढ़ संकल्प की कहानी: रांची में एक संयोगपूर्ण मुलाक़ात
(#रांची #प्रेरणा)

मेरा नया कैमरा मानो मुझसे घूमने की गुहार कर रहा था, इसलिए मैं रांची की जीवंत गलियों में एक फोटोग्राफिक यात्रा पर निकल पड़ा। जीवन के छोटे-छोटे पलमाहौल, भावनाएं, और सड़क किनारे की घटनाएंकैमरे में कैद करता गया। मैं शहर का कोई शानदार नज़ारा ढूंढ रहा था, और इस तलाश में मेरा रास्ता प्रसिद्ध पहाड़ी मंदिर की ओर मुड़ गया, जो सिर्फ़ एक पवित्र स्थल है बल्कि वहाँ से पूरे शहर का विहंगम दृश्य भी दिखाई देता है।

यह भव्य मंदिर ज़मीन से 350 फीट और समुद्र तल से 2140 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ तक पहुँचने के लिए 468 खड़ी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं, जो किसी भी अनुभवी चढ़ाई करने वाले की परीक्षा ले सकती हैं। शिवरात्रि और सावन के पावन महीने में यह मंदिर श्रद्धालुओं से गुलज़ार रहता है। मान्यता है कि इस मंदिर का इतिहास 55,000 वर्ष पुराना है। हर साल गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) और स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के अवसर पर इस मंदिर की चोटी पर तिरंगा फहराया जाता है।

मैं अपने फ़ोटोग्राफ़ी के उत्साह में खोया हुआ था, तभी मेरी नज़र एक युवती पर पड़ी, जिसके चेहरे पर दृढ़ निश्चय झलक रहा था। वह कठिन सीढ़ियाँ चढ़ रही थीदो-तीन सीढ़ियाँ चढ़ती, फिर साँसें लेने के लिए रुक जाती, और फिर दुबारा कोशिश करती। कभी-कभी लड़खड़ा भी जाती, लेकिन उसके हौसले में कोई कमी नहीं थी। उसकी इस जिजीविषा को देखकर मेरे भीतर एक उत्सुकता जागीक्या वह सच में ये 468 सीढ़ियाँ चढ़ पाएगी?

उसके इस अद्भुत संघर्ष को मैंने अपने कैमरे में कैद किया। मैं एक शब्द भी नहीं बोल पाया, लेकिन कैमरे ने उसके चेहरे की भावनाएँ और शरीर से झलकती ताकत को बख़ूबी दर्ज कर लिया। मेरे मन में सवाल उमड़ रहे थेक्या वह ऊपर तक पहुँच पाएगी?

और मेरी आँखों के सामने, उसने यह कर दिखाया! मंदिर की चोटी तक पहुँचने के बाद, उसने पूरे समर्पण के साथ भगवान शिव की पूजा की। जब वह थकान मिटा रही थी, तो मैं उसके पास गया और उसकी कहानी जानने की इच्छा व्यक्त की।

उसने अपना नाम नीतु बताया। बचपन में उसे पोलियो हो गया था। शारीरिक रूप से सीमित होने के बावजूद उसका आत्मबल अटूट थाएक सच्चाई जिसे मैंने अपनी आँखों से देखा और कैमरे में क़ैद किया। वह डालटेनगंज की रहने वाली है और भगवान शिव में उसकी गहरी आस्था है। उसका मानना है कि शारीरिक सीमाएँ मानसिक शक्ति को नहीं रोक सकतीं। उसने यह भी बताया कि वह आत्मनिर्भर रहना पसंद करती है और सहानुभूति को नापसंद करती है।

यह मुलाक़ात मेरे लिए एक गहरा संदेश थीकि एक मज़बूत मन किसी भी बाधा को पार कर सकता है। यह कहानी अरुणिमा सिन्हा की याद दिलाती हैपहली महिला विकलांग जिसने माउंट एवरेस्ट फतह किया। और हाल ही में पैरा ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों की ऐतिहासिक 29 पदकों वाली जीत भी इसी जज़्बे का प्रतीक है।

इस अनुभव ने मुझे एक बार फिर यकीन दिलाया कि दृढ़ निश्चय, निरंतर प्रयास और मेहनत से कुछ भी संभव है। नीतू की कहानी हम सबके लिए एक प्रेरणा हैजो हमें अपनी सीमाओं से आगे बढ़ने और अपने सपनों को पूरा करने की ताकत देती है।

नोट:
तस्वीरें कुछ समय पहले ली गई थीं।
यह तस्वीरें नीतू की हैं, जो पहाड़ी मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ रही हैं।









लेख और तस्वीरें: अशोक करन
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