पहाड़िया जनजाति: समृद्ध विरासत वाले पर्वतीय निवासी
पहाड़िया
जनजाति: समृद्ध विरासत वाले पर्वतीय निवासी #PahadiaTribe
पाठ अशोक
करण |
ashokkaran.blogspot.com
आवास
और मान्यता
पहाड़िया
जनजाति मुख्यतः झारखंड के पहाड़ी क्षेत्रों,
विशेषकर संथाल परगना डिवीजन में निवास करती
है, जो पश्चिम बंगाल
की सीमा से सटा
हुआ है। इन्हें झारखंड,
पश्चिम बंगाल और बिहार सरकारों
द्वारा अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) के रूप में
मान्यता प्राप्त है। हालांकि, ओडिशा
के दक्षिणी जिलों—नुआपाड़ा, कालाहांडी, कोरापुट, बोलांगीर, बरगढ़, नबरंगपुर और रायगढ़ा—में
भी इनकी एक अलग
उपस्थिति पाई जाती है।
भाषाएँ
पहाड़िया
लोग माल पहाड़िया, मालतू
और पहाड़ी जैसी विभिन्न भाषाएँ
बोलते हैं। इनकी भाषाओं
पर बंगाली, असमिया और अन्य क्षेत्रीय
बोलियों का प्रभाव देखा
जाता है।
इतिहास
और संस्कृति
पहाड़िया
जनजाति का इतिहास संघर्ष
और प्रतिरोध से भरा रहा
है। 18वीं सदी में
इन्होंने ब्रिटिशों के भूमि अतिक्रमण
के खिलाफ वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी, जिसे पहाड़िया विद्रोह के रूप में
जाना जाता है। परंपरागत
रूप से ये आत्म-शासन की प्रणाली
अपनाते थे और पश्चिम
बंगाल के स्थानीय जमींदारों
से अच्छे संबंध बनाए रखते थे।
चुनौतियाँ
और विश्वास
दुर्गम
पर्वतीय क्षेत्रों में बसे होने
के कारण इन्हें पानी,
भोजन और शिक्षा जैसी
बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुँचने में
कठिनाइयों का सामना करना
पड़ता है। इनकी ऊँचाई
पर बसी बस्तियाँ सरकार
के लिए सेवाएँ पहुँचाने
में बाधा बनती हैं।
पहाड़िया
लोग अपने पारंपरिक देवी-देवताओं में गहरा विश्वास
रखते हैं और बीमारियों
के उपचार के लिए अक्सर
झाड़-फूँक या पारंपरिक
उपचारों पर निर्भर रहते
हैं, हालांकि ज़रूरत पड़ने पर ये आधुनिक
चिकित्सा सुविधाओं का भी उपयोग
करते हैं।
सामाजिक
प्रथाएँ
पहाड़िया
समुदाय में पारंपरिक विवाह
समारोहों में "बेदी" और "गोलट" जैसी रस्में होती
हैं, जिनमें उपहारों का आदान-प्रदान
और भोज शामिल हो
सकता है। पूर्व-विवाह
संबंध सामान्य माने जाते हैं,
और कुछ परिवारों में
एकल-अभिभावक संरचना भी देखी जाती
है। "पकड़वा विवाह" (जहाँ वर वधु
को भगा ले जाता
है) की परंपरा भी
थी, जिसे बाद में
परिवार और ग्रामवासियों की
स्वीकृति प्राप्त करनी होती थी।
धर्म
पहाड़िया
जनजाति धार्मिक विविधता को दर्शाती है—कुछ लोग हिंदू
धर्म को मानते हैं
तो कुछ ईसाई धर्म
को अपनाए हुए हैं।
बिरहोर जनजाति
इस आलेख में झारखंड
की सबसे छोटी और
अलग-थलग जनजाति बिरहोर
का भी उल्लेख किया
गया है। ये एक
घुमंतू जीवनशैली अपनाते हैं, घने जंगलों
में रहते हैं और
अपने जीवनयापन के लिए वन
संसाधनों पर निर्भर रहते
हैं।
निष्कर्ष
पहाड़िया
जनजाति भारत की समृद्ध
सांस्कृतिक विविधता की सजीव मिसाल
है। चुनौतियों के बावजूद ये
अपनी परंपराओं को सहेजे हुए
हैं और समय के
साथ खुद को ढालते
जा रहे हैं।
कृपया
इसे लाइक करें और साझा करें। धन्यवाद।




Beautiful shots.
जवाब देंहटाएंNice information.
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