झारखंड
में गांव का जीवन: सादगी और परंपरा की एक झलक
झारखंड
के घने जंगलों से
गुजरते समय, एक असाइनमेंट
पर यात्रा के दौरान हमारी
कार एक सड़क किनारे
ढाबे पर थोड़ी देर
के लिए रुकी। मेरे
सहकर्मी और मैं थोड़ी
देर बाहर निकले ताकि
पैर फैलाकर चाय और नाश्ते
का आनंद ले सकें।
यहीं, ग्रामीण जीवन के सादे
और सुंदर वातावरण में मैंने एक
दिल को छू लेने
वाला दृश्य देखा — पारंपरिक परिधान में गांववाले अपने
मुर्गों के लिए अनाज
बिखेर रहे थे और
पक्षी खुशी-खुशी उसे
चुगने के लिए इकट्ठा
हो गए। यह दृश्य
इतना प्राकृतिक और शुद्ध था
कि मैंने अनायास ही कैमरा निकालकर
इन सहज पलों को
कैद कर लिया।
ऐसे
दृश्य झारखंड के गांवों में
आम हैं, जहां का
जीवन प्रकृति से गहराई से
जुड़ा हुआ है। यहां
की दैनिक जीवनशैली परंपरा, जीवंत आदिवासी संस्कृति और आसपास के
प्राकृतिक परिवेश द्वारा आकार लेती है।
हालांकि
यह जीवन शांत और
सुकूनभरा है, फिर भी
कई गांव आज भी
बिजली, स्वच्छ पेयजल और पक्की सड़कों
जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
पहाड़ियों और धान के
खेतों के बीच बसे
ये इलाके प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर हैं,
जो स्थानीय लोगों की आजीविका का
आधार हैं।
झारखंड
में कई आदिवासी समुदाय
रहते हैं जैसे — हो,
उरांव, मुंडा और संथाल, जिनमें
संथाल सबसे बड़ा है।
हर जनजाति की अपनी अलग
भाषा, रीति-रिवाज और
सांस्कृतिक विरासत होती है। कृषि,
खासकर धान की खेती,
यहां की मुख्य जीविका
है, जबकि नदियाँ, जंगल
और पहाड़ मछली पकड़ने, फल-सब्जी इकट्ठा करने और शिकार
के जरिए अतिरिक्त सहारा
प्रदान करते हैं।
स्वास्थ्य
सेवाएं और शिक्षा तक
पहुंच अभी भी सीमित
है और गरीबी एक
बड़ी चुनौती बनी हुई है।
फिर भी कई ग्रामीण
अब जैविक खेती जैसे टिकाऊ
तरीकों को अपना रहे
हैं और प्रकृति के
साथ सामंजस्य में जीवन जीने
के लिए प्रतिबद्ध हैं।
यहां
की सांस्कृतिक समृद्धि पारंपरिक लोकगीतों और नृत्यों के
रूप में प्रकट होती
है जैसे मुंडारी, पैका,
मर्दाना, झूमर और लहसुआ।
इन गांवों में सामुदायिक भावना
बहुत मजबूत है, जिसे पारंपरिक
पंचायतें या गांव के
बुजुर्ग संचालित करते हैं।
इन गांवों में जीवन शांतिपूर्ण
है — स्वच्छ हवा, धीमी गति
से चलता जीवन और
एक अपनापन महसूस होता है। यहां
के भोजन सरल लेकिन
पोषणयुक्त होते हैं, जिनमें
आमतौर पर चावल, दाल,
रोटी और मौसमी सब्जियाँ
होती हैं, जिन्हें पारंपरिक
तरीकों से पकाया जाता
है — जैसे करी में,
तले हुए, भूने हुए
या उबाले हुए।
कई आदिवासी परिवार आज भी अपने
पूर्वजों की जीवनशैली अपनाए
हुए हैं और जंगल
से भोजन व औषधियों
के लिए निर्भर रहते
हैं। वे जड़ें, फल,
शहद और जड़ी-बूटियाँ
इकट्ठा करते हैं, और
कुछ लोग सूअर, मुर्गियाँ
और गाय जैसे पालतू
जानवर भी पालते हैं।
इनकी
सांस्कृतिक पहचान उस भूमि से
गहराई से जुड़ी हुई
है, जहां वे पीढ़ियों
से रहते आ रहे
हैं। ये समुदाय प्रकृति
के साथ सामंजस्य में
रहते हैं, संसाधनों को
साझा करते हैं और
आत्मनिर्भर जीवन जीने का
प्रयास करते हैं।
इस समृद्ध आदिवासी विरासत को बढ़ावा देने
के लिए झारखंड सरकार
एक आदिवासी पर्यटन कॉरिडोर विकसित कर रही है
— तामाड़ के अरकी से
लेकर खूंटी के उलिहातु तक,
जो भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली है।
इस पहल का उद्देश्य
आगंतुकों को आदिवासी परंपराओं
और इतिहास से परिचित कराना
है। इसके अतिरिक्त, राज्यभर
के जलप्रपातों, जंगलों और धार्मिक स्थलों
के पास विश्राम स्थल
और पर्यावरण अनुकूल संरचनाएं बनाने की भी योजना
है, जिससे धार्मिक और खनिज पर्यटन
को बढ़ावा मिले।
तस्वीरों
में:
- झारखंड का एक शांत और सुंदर गांव दृश्य
- गांव की महिलाएं हाट (स्थानीय बाजार) से लौटती हुईं
लेख
और फोटोग्राफी: अशोक करन
📷
विजिट करें: ashokkaran.blogspot.com
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Nice information.
जवाब देंहटाएंExcellent photography.
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